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बसंत पंचमी ( Basant Panchami ) बहुत ही प्यारा त्यौहार हैं, इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती हैं। इस दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती से ज्ञान और यश के लिए सभी लोग अपने -अपने हिसाब से माँ को मनाते हैं । इस दिन सभी लोग पीले रंग के वस्त्र धारण कर मां सरस्वती की आराधना करते हैं और पीले रंग से बने हुए आहार का भोग भी लगाते हैं। यह त्यौहार सभी जगह मनाया जाता हैं।

बसंत पंचमी का त्योहार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।

बसंत पंचमी में ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा – अर्चना की जाती हैं। इस बार बसंत पंचमी का पर्व 5 फरवरी दिन शनिवार के दिन मनाई जायगी।

सवेरे उठकर नहा धोकर पीले कपडे पहनकर माँ सरस्वती जी की पूजा वन्दना करे। माँ की आरती गाये, भोग लगाए और माँ को प्रशन्न करने के लिए मंत्र पढ़े।

पीले फूलों से माँ को सजाये, घर में पीले फूलों की रंगोली बनाये, और माँ की भक्ति करे। घी, तेल जो भी हो उसका सच्चे मन से दीपक जलाये और माँ की आरती करे।

आप अपने आप को माँ सरस्वती के चरणों में समर्पित कर दे बाकी सब माँ संभाल लेंगी। सच्चे मन से किया गया हर काम पूरा होता हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थी, जिसके कारण इस दिन को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, कोई नई विद्या आरंभ करना, कोई नया काम शुरू करना, अन्नप्राशन संस्कार या अन्य कोई शुभ काम करना अच्छा माना जाता है, कह सकते हैं की इस दिन से सभी अच्छे कामो की शुरुवात हो जाती हैं।

इस दिन स्कूलों में बच्चे पीले कपडे पहनकर आते हैं, और माँ सरस्वती का गुणगान करते हैं। ये दिन बहुत ही शुभ होता हैं, इस दिन सभी लोगो में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता हैं।

बसंत पंचमी से मौसम भी एक अलग रुख ले लेता हैं, सचमुच एक नए वातावरण का आगाज हो जाता हैं।

पीले लड्डू, पीली खिचड़ी, पीली खीर और पीली मिठाई और ना जाने कैसे -कैसे पकवान खाने को मिलते हैं, सचमुच ये बहुत ही प्यार त्यौहार हैं।

इस दिन विशेष पूजा करने से सरस्वती माँ जल्दी प्रसन्न होती हैं, और मन चाहा वरदान देती हैं। बसंत पंचमी के उत्सव को हर्ष के साथ मनाये और इस दिन किसी को भी बुरा ना कहे।

Basant Panchami
Basant Panchami

मां सरस्वती का संपूर्ण मंत्र

ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।

मां सरस्वती जी की आरती

जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे॥
॥ जय सरस्वती माता…॥

जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥

श्री सरस्वती चालीसा

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥

राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥

रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥

सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी॥

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप। डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु। राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

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