सकट का व्रत संतान की लम्बी आयु के लिए रखा जाता हैं। ये व्रत बहुत ही फलदायी हैं, Sakat Chauth Vrat Kahani सुनने और कहने से संतान के सारे दुःख दूर होते हैं। ये बच्चो को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली संकष्टी गणेशचतुर्थी के नाम से भी जाना जाता हैं, ये व्रत माघ कृष्णपक्ष चतुर्थी 21 जनवरी, 2022, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
Sakat Chauth 2023 is on Tuesday, 31 October.
ये व्रत मुख्य रूप से चन्द्रमा और गणेश भगवान् की पूजा- अर्चना के लिए रखा जाता हैं। इस चतुर्थी व्रत के करने से मानसिक शांति, कार्य में सफलता, प्रतिष्ठा में वृद्धि और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इस दिन किया गया व्रत और पूजा- पाठ और दान परिवार में सुख-शांति लेकर आता है। इस व्रत को करने से रिद्धि-सिद्धि के दाता गणेशजी आप पर प्रसन्न होंगे।
सुबह उठकर घर स्वच्छ करके, नहा धो कर लाल रंग के कपडे पहनकर पूरा दिन निर्जला उपवास रखे, और शाम को पूजा करने के बाद दूध और शकरकंदी का सेवन करे।
4-5 बजे के करीब में लकड़ी के पाटे पर लाल या पीला कपडा बिछाकर ईशान कोण में मिट्टी के गणेश व चौथ माता की तस्वीर स्थापित कर रोली, मोली,अक्षत, फल-फूल, शमीपत्र, दूर्वा आदि से विधिपूर्वक पूजन करें।
तिल और गुड़ से बकरा बनाये और अपने बेटे से पूजा के बाद कटवा कर ही प्रसाद ग्रहण करे। तिल के लड्डू का प्रसाद घर के अन्य सदस्यों को भी दे और आरती कर सकट भगवान की कहानी सुने।
मंत्र जपे
संकष्टी चतुर्थी के दिन विधार्थी ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का 108 बार जप करके प्रखर बुद्धि, उच्च शिक्षा और गणेशजी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। ‘ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात’ का जप जीवन के सभी संकटों को दूर करेगा।
प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था । एक बार उसने बर्तन बनाने के लिए एक आवा लगाया, पर बहुत देर तक आवा पका नहीं तो इस पर वह कुम्हार बहुत दुखी हुआ और राजा के पास गया।
राजा ने कुम्हार की पूरी बात सुनी और अपने राज्य के एक से बड़े ज्ञानियों को बुलाया और उन्हें पूरी कहानी बताई इस पर ऋषियों ने कहा की यदि इसमें किसी बालक की बलि दी जाए तो ये आवा पकाने का काम करने लगेगा। फिर क्या था राज्य के सारे बच्चे बारी -बारी से उस आवे में मर गये।
उसी राज्य में एक गरीब बुढ़िया रहती थी जिसकी एक ही संतान थी, और एक दिन जब उसका नंबर आया तो वह बहुत दुखी हुयी और उसने अपने बेटे को रोकर विदा किया और अपने बेटे से कहा की तुम उस आवे में हरि सकट, हरि सकट का जाप करते रहना, और मैं तुम्हारे लिए यहाँ पूजा करती रहूंगी, बेटे ने वैसे ही किया, सुबह हुयी बुढ़िया भाग कर कुम्हार के पास पहुंची और आवा खोलने की जिद्द करने लगी, इस पर कुम्हार ने कहा की जब किसी की संतान इस आवे से नहीं बच पायी तो तुम्हरा बेटा कैसे बच सकता हैं, पर बुढ़िया की जिद्द पर जैसे ही कुम्हार ने आवा खोला तो देखा की वह बालक बिलकुल ठीक था और कुम्हार के बर्तन भी पक चुके थे।
बुढ़िया में बेटे को गले से लगाया और गणेश जी को धन्यवाद् किया, उसी दिन से सकट का व्रत किया जाने लगा। इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और उसने राजा के सामने पूरी कहानी सुनाई। इसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाली सकट चौथ की महिमा का गुणगान किया।
गणेश जी की कहानी
एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वे मदद मांगने भगवान शिव के पास गएऔर उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेश जी भी बैठे थे। देवताओं की विनती सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों को दूर कर सकता है।
तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए हाँ कहा इस पर पर भगवान भोलेनाथ ने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेते हुए कहा की तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुँह से ये बात निकलते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए और गणेशजी थोड़ी देर सोचने लगे कि वे चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा और इसलिए गणेशजी अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे।
तब भगवान शिव ने गजानन से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। तब गणेश जी ने कहा की मेरे लिए तो माता-पिता के चरणों में ही तीनो लोक हैं।यह सुनकर भगवान शिव जी बहुत खुश हुए और उन्होंने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी और गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप ,दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे ।व्रती के सभी कष्ट दूर होकर उसे जीवन में हर प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
इस व्रत को करने वाले को अपने इच्छा के अनुसार गरीबों को तिल गुड के लड्डू,कम्बल या कपडे आदि का दान देना चाहिए।